पंडित राधावल्लभ चतुर्वेदी का संपूर्ण जीवन संगीत के गूढ़ रहस्यों की खोज एवं भारतीय संगीत के अभूतपूर्व वैज्ञानिक स्वरूप से जन-जन को परिचित कराने के लिए समर्पित रहा। लुप्त हो रही संगीत परंपराओं रचनाओं के पुनरुत्थान एवं संगीत के विद्यार्थियों- प्रेमियों तक उनके शिक्षण प्रशिक्षण, प्रचार प्रसार में वे आजीवन संलग्न रहे।
लोकगीत के क्षेत्र में स्थाई प्रकाशमान स्तंभ एवं इस क्षेत्र में अपने विशिष्ट योगदान के कारण पंडित राधावल्लभ चतुर्वेदी को एक बहुमूल्य हीरे के रूप में देखा तो अवश्य गया किंतु उन्हें पुरस्कृत करने की चेष्टा नहीं की गई । वे स्वयं तो ऋषि तुल्य थे, कभी भी किसी से पुरस्कृत होने की कामना नहीं रखते थे। उनके जन्म शताब्दी वर्ष ( 2017- 2018) में उनके शिष्य, सहयोगी, लोकगीत में रुचि रखने वाले अनेक व्यक्तियों ने उन्हें अजातशत्रु, लोकगीत के कीर्ति स्तंभ, महर्षि आदि अनेक उपाधियां दीं । पंडित राधावल्लभ चतुर्वेदी को अपने जीवन काल में या मरणोपरांत कोई भौतिक बड़ा पुरस्कार नहीं मिला लेकिन वर्ष 2017- 18 में उनके जन्म शताब्दी वर्ष में बड़ी भव्यता और स्नेह से उन्हें अलग-अलग समारोह में याद किया गया।
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ द्वारा संत गाडगे सभागार में 28 अप्रैल 2017 को पंडित राधावल्लभ चतुर्वेदी की स्मृति में ‘अवध संध्या’ का आयोजन किया गया। इसमें पंडित चतुर्वेदी द्वारा संगीतबद्ध की गई रचनाओं का गायन किया गया। साथ ही उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की कला पत्रिका ‘छायानट’ का पंडित राधावल्लभ चतुर्वेदी पर केंद्रित विशेषांक का भी लखनऊ के कला जगत के प्रतिष्ठित कलाकारों- साहित्यकारों द्वारा लोकार्पण किया गया। इस विशेषांक में पंडित चतुर्वेदी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित 23 संस्मरणात्मक विशिष्ट आलेख प्रकाशित हुए।
10 जून 2017 को लखनऊ में पंडित राधावल्लभ चतुर्वेदी की पुण्यतिथि पर एक गोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें प्रसिद्ध भजन गायक श्री अनूप जलोटा समेत गणमान्य व्यक्तियों, पत्रकारों तथा उनके शिष्यों ने अपनी यादें प्रस्तुत की। 12 अगस्त 2017 को नई दिल्ली के इंडिया सेंटर द्वारा सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका श्रीमती शुभा मुद्गल जी के निर्देशन में ‘ खजाने लोक संगीत के’ शीर्षक से एक कार्यक्रम जो कि पंडित राधावल्लभ चतुर्वेदी की संगीत रचनाओं पर आधारित था। संगीत प्रेमियों , समीक्षकों, पत्रकारों एवं आम दर्शकों की एक राय थीक्यों नहीं मालूम था कि लोक संगीत में ऐसी अद्भुत रचनाएं भी होती हैं। शताब्दी वर्ष में संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली ने पंडित राधावल्लभ चतुर्वेदी की दुर्लभ कृति ‘ ऊंची अटरिया रंग भरी’ का 41 वर्ष बाद पुनः प्रकाशन किया। पंडित चतुर्वेदी जी की संगीत शास्त्र पर आधारित दूसरी पुस्तक -’ सा रे ग म’ का पुनर्प्रकाशन 2019 में संगीत नाटक अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा किया गया।
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